Tuesday, 29 April 2014

कूड़े 
हाथो को धोया था मैने जिस थैले को फेंक कर
उसी कूड़े के थैले में कुछ तलाश रहा था वो दोनो हाथ डाल कर। 
उम्र करीबन सोलह साल और कद पांच फुट का  
मजबूत कंधो पर झोला टाँगे तीन फुट का। 
आँखो में चमक अँधेरा चीरने वाली 
अपने अरमानो को ढूंढ रहा था हाथ डाल कर



दया भाव से पूछा कोई दूसरा काम क्यूँ नहीं करते 
गहरी नज़रो से मुझे देख वो मुस्कुराया
"साहब किसी भी काम के लिए पैसा चाहिए 
नौकरी के लिए तजुर्बा चाहिएऔर तजुर्बे के लिए नौकरी;
आदमी ईमानदार होना चाहिए और ईमानदारी साबित करने के लिए नौकरी चाहिए।
क्या आप नौकरी दे पाओगे ?"

मै सकपकाया , उठती हीन भावना से घबराया
अकड़ गयी नहीं थी मेरी, कुछ रुपये निकाल लाया।
नोट देख वो बोला , साहब कूड़े में हाथ डाल कमाता हूँ 
किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता हूँ।
जमाने में बहुत गम है कंहा तक साथ निभाओगे
मेरे पीछे दस और रहे हैं;
क्या आप उन सब को दे पाओगे ?

आपकी आँखो में सवालात बहुत हैं
इन्हें  भी  फेंक  दो  दिल  हल्का  हो  जायेगा।
मेरे  लिए  कूड़े  से  भी  बदद्तर   हैं
आप  इनके  जवाब  कभी  भी  नहीं  पा  पाओगे  
मेरी  टूटी  हुई  अकड़  सूनी  आँखों  संग  लौटती  है 

अब  मेरी  माँ  थैले  में  कुछ  ना  कुछ  जरुर  रखती  है
वो  रोज  सुबह  हाथ  डाल  मेरे  घर  की  तरफ  देख  मुस्कुराता  है।
एक  अजीब  सी  टीस  मेरे  दिल  में  उठती  है 
ना  जाने  क्यूँ  दिन  भर  उसकी  हंसी  मुझे  चुभती  है...



जागो भारत

- विक्रम सिंह तोमर

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