वाशिंगटन ।
भारतीय शोधकर्ताओंने प्लास्टिक के कचरे से कार का ईधन तैयार करने में सफलता हासिल की है। शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक को अपेक्षाकृत कम तापमान पर पिघलाकर तरल ईधन में तब्दील किया और फिर इसे कार के इंजन में प्रयोग करने लायक बनाया। शोधकर्ताओं का कहना है कि रासायनिक रूप से यह ईधन काफी हद तक दूसरे ईधनों जैसा ही है। प्लास्टिक के एक किलो कचरे से 700 ग्राम ईधन तैयार होता है।
बाल्टी, डिब्बे, कंप्यूटर, पॉलीथीन बैग के निर्माण के लिए लो-डेंसिटी पॉलीएथलीन [एलडीपीई] का प्रयोग किया जाता है। सेंचुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट ओडिशा के केमिस्ट अच्युत कुमार पांडा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ओडिशा के केमिकल इंजीनियर रघुवंश कुमार सिंह के साथ एलडीपीई को तरल ईधन में परिवर्तित करने के लिए सस्ती तकनीक ढूंढने की कोशिश में जुटे हुए हैं। चूंकि अधिकतर प्लास्टिक पेट्रोकेमिकल्स से बने होते हैं इसलिए यह मिश्रण इन्हें दोबारा ईधन की जगह इस्तेमाल करने लायक बना देता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंट एंड वेस्ट मैनेजमेंट में प्लास्टिक से ईधन बनाने की यह पूरी प्रक्रिया प्रकाशित की गई है। अगर बड़े स्तर पर इसका इस्तेमाल संभव हो सका तो प्लास्टिक के बोझ से काफी हद छुटकारा मिल सकता है। साथ ही दुनिया को चुनौती दे रही एक और समस्या ईधन की कमी का भी निपटारा संभव है।
प्लास्टिक को पहले काओलिन कैटलिस्ट पर 400-500 डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाता है। इससे प्लास्टिक के लंबे पॉलीमर टूटकर एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को थर्मो-कैटलिटिक डिग्रेडेशन कहते हैं। इससे काफी मात्रा में सूक्ष्म कार्बन युक्त अणु पैदा होते हैं। इसके बाद कई अन्य प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर ईधन बनाया जाता है।
भारतीय शोधकर्ताओंने प्लास्टिक के कचरे से कार का ईधन तैयार करने में सफलता हासिल की है। शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक को अपेक्षाकृत कम तापमान पर पिघलाकर तरल ईधन में तब्दील किया और फिर इसे कार के इंजन में प्रयोग करने लायक बनाया। शोधकर्ताओं का कहना है कि रासायनिक रूप से यह ईधन काफी हद तक दूसरे ईधनों जैसा ही है। प्लास्टिक के एक किलो कचरे से 700 ग्राम ईधन तैयार होता है।
बाल्टी, डिब्बे, कंप्यूटर, पॉलीथीन बैग के निर्माण के लिए लो-डेंसिटी पॉलीएथलीन [एलडीपीई] का प्रयोग किया जाता है। सेंचुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट ओडिशा के केमिस्ट अच्युत कुमार पांडा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ओडिशा के केमिकल इंजीनियर रघुवंश कुमार सिंह के साथ एलडीपीई को तरल ईधन में परिवर्तित करने के लिए सस्ती तकनीक ढूंढने की कोशिश में जुटे हुए हैं। चूंकि अधिकतर प्लास्टिक पेट्रोकेमिकल्स से बने होते हैं इसलिए यह मिश्रण इन्हें दोबारा ईधन की जगह इस्तेमाल करने लायक बना देता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंट एंड वेस्ट मैनेजमेंट में प्लास्टिक से ईधन बनाने की यह पूरी प्रक्रिया प्रकाशित की गई है। अगर बड़े स्तर पर इसका इस्तेमाल संभव हो सका तो प्लास्टिक के बोझ से काफी हद छुटकारा मिल सकता है। साथ ही दुनिया को चुनौती दे रही एक और समस्या ईधन की कमी का भी निपटारा संभव है।
प्लास्टिक को पहले काओलिन कैटलिस्ट पर 400-500 डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाता है। इससे प्लास्टिक के लंबे पॉलीमर टूटकर एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को थर्मो-कैटलिटिक डिग्रेडेशन कहते हैं। इससे काफी मात्रा में सूक्ष्म कार्बन युक्त अणु पैदा होते हैं। इसके बाद कई अन्य प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर ईधन बनाया जाता है।