Tuesday, 24 September 2013

कूड़ा बीनने वाले बचा सकते हैं पर्यावरण


कूड़ा बीनने वाले बचा सकते हैं पर्यावरण Updated on: Sun, 18 Nov 2012 07:13 PM (IST) बरेली: रोज के कचरे और उसमें मौजूद प्लास्टिक के नुकसान पर कई संस्थाएं और सरकार जागरूक करती रहती हैं। उपजा प्रेस क्लब में रविवार को अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ (एआइकेएमएम) और असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा (यूएलआरएफ) ने सेमिनार करके आसान और न्यायसंगत रास्ता सुझाया। सेमिनार में असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा के महासचिव हरीश पटेल ने कहा कि कूड़ा उठाने वाली आबादी समाज में अछूत की तरह हाशिये पर है। कूड़ा बीनकर उसकी छंटाई और रिसाइकिलिंग में योगदान को फिर भी नजरंदाज किया जाता है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के जिलाध्यक्ष यशपाल सिंह ने कहा कि यह मानवाधिकार कानूनों के लिए चिंतनीय विषय है। इस अहम कड़ी से जुड़ी आबादी को कानूनी तौर पर इज्जत देकर नगर पालिका का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। यूएलआरएफ के मुश्ताक हुसैन ने कहा कि सॉलिड वेस्ट को बेहतर तरीके से निस्तारित किया जाए तो पर्यावरण की काफी रक्षा की जा सकती है। सेमिनार में बताया गया कि दस दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर एआइकेएमएम का राष्ट्रीय सम्मेलन होगा। अगले दिन गोष्ठी होगी, जिसमें दूसरे देशों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। आयोजन में मजदूर मंडल के लक्ष्मण सिंह राणा, इंकलाबी मजदूर केंद्र के सतीश कुमार, टीडी भास्कर, चंद्रपाल सिंह आदि शामिल हुए। पेश किया मॉडल एआइकेएमएम की ओर से कूड़ा निस्तारण के लिए पेश किए मॉडल में बताया गया कि कुल कचरे का 80 फीसद घरों से ही पैदा होता है। जिसमें 50 फीसदी जैविक कचरा को बायो गैस आदि से और 30 फीसद को रिसाइकिलिंग के जरिये सामुदायिक स्तर पर निपटाया जा सकता है। केवल 20 प्रतिशत कचरा ही ऐसा होता है, जिसे समाप्त करना होगा। कचरे की छंटाई के लिए मौजूदा कूड़ा बीनने वालों को ही लगाया जा सकता है। इस मॉडल पर बेंगलोर में काम किया जा रहा है। इसको संचालित कराने के लिए महासंघ नगर निगम को मुफ्त सेवा देने को तैयार है। यह भी जानें कूड़ा बीनने वाले हर साल 9 लाख 62 हजार 133 टन कार्बन डाईऑक्साइड गैसों को अप्रभावी बनाते हैं। यह एक लाख 75 हजार मोटर वाहनों से उत्सर्जित की जाने वाले प्रदूषण के बराबर है। सिर्फ दिल्ली में साढ़े तीन लाख लोग कूड़ा बीनने के व्यवसाय में सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर लगे हैं। --------------------- बांझ तक बना सकता है सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ के सचिव शशि भूषण पंडित ने दैनिक जागरण से बातचीत में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट पर भी बेबाक राय जाहिर की। उन्होंने बताया कि रविवार को प्लांट जाकर भी देखा। उन्होंने कहा कि कचरा में 70 फीसद प्लास्टिक होती है, जिसके निस्तारण में 90 फीसद क्लोरीन का उत्सर्जन होगा और डाईऑक्सीन गैस वातारण में घुलेगी। इन गैसों का असर पशु और मानव दोनों में बांझपन, हृदय रोग आदि पैदा कर सकता है।

एक पुरस्कार कूड़ा बीनने वालों के नाम


एक पुरस्कार कूड़ा बीनने वालों के नाम शनिवार, 10 मार्च, 2012 को 07:04 IST तक के समाचार चिंतन की कोशिशों से पिछले 5 सालों में भारत के करीब 20 हज़ार कूड़ा बिनने वालों को मदद मिली है. भारत में कूड़ा बिनने वालों की मदद करने वाली संस्था चिंतन को अमरीकी विदेश मंत्रालय की ओर से ‘इनोवेशन अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है. पहली बार दिया गया यह पुरस्कार चिंतन को कूड़ा करकट बिनने वाले लोगों को संगठित करने और उनकी मदद के ज़रिए पर्यावर्ण की रक्षा करने के लिए दिया गया है. इससे जुड़ी ख़बरें निजीकरण की कोशिशों से कचरा उठाने वाले परेशान 'अपना कूड़ा वापस ले ब्रिटेन' कूड़े से बनाई सड़कें ! इसी विषय पर और पढ़ें अमरीका, भारत चिंतन की निदेशक भारती चतुर्वेदी पुरस्कार लेने के लिए वॉशिंगटन पहुंची. पुरस्कार लेने के बाद बीबीसी से बात करते हुए भारती चतुर्वेदी ने कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि अमरीकी विदेश मंत्री हिलरी क्लिंटन ने कूड़ा बिनने वालों को एक तरह से सम्मानित किया है. क्यूंकि हमारे अपने देशों में तो हमें बहुत लड़ना पड़ता है सिर्फ यह समझाने के लिए कि कूड़ा बीनने वाले लोग भी इंसान हैं औऱ बहुत ज़रूरी काम करते हैं, इनके बिना हमारे शहर साफ़ नहीं रहेंगे. ” उन्होंने कहा कि मैं उम्मीद करती हूं कि मैं अपने देश में भी कूड़ा बीनने वालों के प्रति ऐसी ही भावनाएं रखने का संदेश लेकर जाऊंगी. "भारत के कई शहरों में कूड़े को रिसाइकल करने के लिए कूड़ा बीनने वाले कर्मचारियों की मदद चाहिए होती है. इन लोगों के कारण ही कूड़े में 20 प्रतिशत तक की कटौती भी होती है. लेकिन कूड़े के ढेर में से ऐसी चीज़ें चुनना जिनको रिसाईकल किया जा सकता है, यह खतर्नाक और गंदगी से भरा काम है. इसके अलावा इनके स्वास्थ्य को भी खतरा होता है. " हिलरी क्लिंटन, अमरीकी विदेश मंत्री चिंतन समेत यह पुरस्कार उन संस्थाओं को दिया गया है जो कुछ अलग करके समाज में बदलाव लाने और लोगों के उत्थान में मदद करती हैं. इस पुरस्कार के साथ चिंतन को 5 लाख डॉलर की राशि भी मिली है. कोई इनकी भी ले सुध वॉशिंग्टन में पुरस्कार वित्रण समारोह में बोलते हुए अमरीकी विदेश मंत्री हिलरी क्लिंटन ने कहा, “भारत के कई शहरों में कूड़े को रिसाइकल करने के लिए कूड़ा बीनने वाले कर्मचारियों की मदद चाहिए होती है. इन लोगों के कारण ही कूड़े में 20 प्रतिशत तक की कटौती भी होती है. लेकिन कूड़े के ढेर में से ऐसी चीज़ें चुनना जिनको रिसाईकल किया जा सकता है, यह खतर्नाक और गंदगी से भरा काम है. इसके अलावा इनके स्वास्थ्य को भी खतरा होता है.” क्लिंटन ने कहा, “चिंतन कूड़ा बिनने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने और उनको संगठित करने का काम करती है और इसके साथ ही बाल मज़दूरी को भी खत्म करने में मदद करती है. यह संस्था इनको मान्यता दिलाने और इन्हे सुरक्षा और सम्मान दिलाने की हिमायत करती है. ” अमरीकी विदेश मंत्री ने कहा कि चिंतन की कोशिशों से पिछले 5 सालों में भारत के करीब 20 हज़ार कूड़ा बिनने वालों को मदद मिली है. करीब 2000 बच्चों को इस काम से निकाल कर पढ़ाई करने में और जीवन के विकास में लगाया गया है. पुरस्कार लेने के बाद चिंतन की निदेशक भारती चतुर्वेदी ने शुक्रिया अदा किया और कहा कि उनकी संस्था भारत के मध्यम वर्ग की गंदगी उठाकर उसे सामाजिक दौलत में बदलती है. उनका कहना था कि भारत में कूड़ा बिनने वालों को बुरी नज़र से देशा जाता है और उनके बच्चो को भेदभाव के कारण स्कूलों में प्रवेश मिलने में भी दिक्कतें आती हैं. भारत में कूड़े को सही ढंग से ठिकाने न लगाने या रीसाइक्लिंग न करने के कारण 3 प्रतिशत तक ग्रीन हाउस गैस निकलती है. "कूड़ा सिर्फ़ कूड़ा नहीं वह जीविका का साधन भी है और अगर हम उसे जीविका बनाएंगे तो लोगों को रोज़गार भी मिलेगा और पर्यावरण को भी फ़ायदा होगा. " भारती चतुर्वेदी, निदेशक 'चिंतन' भारती कहती हैं, “कूड़ा सिर्फ़ कूड़ा नहीं वह जीविका का साधन भी है और अगर हम उसे जीविका बनाएंगे तो लोगों को रोज़गार भी मिलेगा और पर्यावरण को भी फ़ायदा होगा.” कई शहरों में अब सरकारी सफाई संस्थाएं कई निजी कंपनियों को सफ़ाई और कूड़ा उठाने का ठेका दे रही हैं. इससे यह समस्या पैदा हो रही है कि जब बड़ी बड़ी कंपनियां कूड़ा उठाने का काम करने लगी हैं तो वह लोग जो कूड़ा बिनने को जीविका बनाए हैं उनके रोज़गार को भी अब खतरा पैदा हो रहा है. लेकिन भारती चतुर्वेदी जो दिल्ली विश्वविद्यालय और अमरीका की जान हाप्किंस यूनिवर्सिटी से एमए किए हुए हैं, उन्हे कबाड़ और कबाड़ियों के साथ काम करने की कैसे सूझी. भारती बताती हैं, “दिल्ली में एमए करने के दौरान ही पढ़ाई के अलावा पूरा एक साल मैंने कूड़ा बीनने वालों के साथ बिताया. यह देखने के लिए की यह लोग कैसे काम करते हैं. मुझे जिज्ञासा थी कि इसमें होता क्या है और मुझे आम लोगों का इन कूड़ा बीनने वालों के प्रति रवैय्या बहुत खराब लगा.” पिछले 16 साल से भारती इसी तरह कूड़ा बीनने वालों के साथ काम कर रहीं हैं. और उन्होंने कई बदलाव देखें हैं जैसे अब कबाड़ी संगठित हो रहे हैं और वह शहर को साफ़ रखने में अपना भी योगदान देखते हैं और फक्र महसूस करत हैं. http://www.safaisena.net/hindi/index.htm

हाईटेक शिक्षा लेेंगे कूड़ा बीनने वाले,शहर के स्लम एरिया में जिलाधिकारी ने खोली विद्यालय

हाईटेक शिक्षा लेेंगे कूड़ा बीनने वाले,शहर के स्लम एरिया में जिलाधिकारी ने खोली विद्यालय September 21, 2013 images फिरोजाबादः कूड़ा बीनने वाले दो दर्जन बच्चों के जीवन में जल्द ही नया सबेरा आने वाला है। स्लम एरिया में रहने वाले इन बच्चों को शिक्षित करने के लिए खुद जिलाधिकारी संध्या तिवारी ने पहल की है। उन्होंने एक हाईटेक स्कूल खोला है। इसमें अमीरों वाले स्कूल जैसी व्यवस्थाएं होंगी। इस स्कूल का उद्घाटन जल्द ही होगा। तैयारियों अंतिम दौर में चल रही है। शहर में बालश्रम नई बात नहीं हैं। शासन, प्रशासन और समाजसेवियों के तमाम प्रयासों के बावजूद हजारों की संख्या में बच्चे पढ़ाई छोड़ अपना पेट भरने की जुगत में लगे हैं स्लम एरिया में रहने वाले सैंकड़ों बच्चे सुबह आंख खुलते ही कूड़ा बीनने निकल जाते हैं। स्कूल जाना, पढत्राई करना इनकी दिनचर्या में शामिल नहीं है। जिससे वे धीर-धीरे समाज की मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं। ऐसे बच्चों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण दिखाते हुए खुद जिलाधिकारी ने एक अनूठी पहल की है। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने एक ऐसा स्कूल खोलने का निर्णय लिया है। इसमें केवल गरीब और कूड़ा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाया जाएगा। इसके लिए नगला करन सिंह में एक भवन किराए पर ले लिया गया है। इसकी रंगाई-पुताई कर स्कूल के माहौल में ढ़ाला जा चुका है। इमारत के दो कमरों में एक से पांच तक की कक्षाए संचालित होंगी। उनमें कुल 25 बच्चे पढ़ेंगे। इन बच्चों को किताब, काॅपी, लंच बाॅक्स, पानी की बोतल, डेªस बस्ता सब फ्री मिलेगा। इतना ही नहीं सरकारी स्कूलों की तरह यहां एमडीएम (मध्याह्न भोजन ) भी मिलेगा। भुगतान प्रशासन द्वारा निजी स्त्रोंतों से किया जाएगा। सब कुछ फ्री मिलने वाले इस स्कूल में व्यवस्थाएं हाईटेक होंगी। बैठने के लिए अच्छा फर्नीचर और बोर्ड लगाए जा रहे हैं। स्कूल में एक टीवी और डीवीड़ी है। इससे बच्चों को इंग्लिश मीडियम केस्कूलों की तरह वीडियो दिखाकर कविताएं, रेम्स और अन्य पाठ्यक्रम याद कराया जाएगा। बच्चों के खेलने की भी व्यवस्था है। स्कूल में दो छोटे झूले लगाए जा रहे हैं। स्कूल में सभी व्यवस्थाएं करने और बच्चों के एडमीशन की जिम्मेदारी जिलाधिकारी ने एएलसी को सौंपी है।