Security Guard,Housekeeping & Solid Waste Management Services
Monday, 30 November 2015
कचरा प्रबंधन से ही स्वच्छ होगा भारत
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सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। झाड़ू उठाने भर से नहीं बल्कि कचरे को ठिकाने लगाने से स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकेगा। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों से रोजाना निकलने वाले लाखों टन कूड़े का उचित प्रबंधन न होने से कई तरह की मुश्किलें पैदा हो गई हैं। खुले में शौच बंद करने के पुख्ता उपाय और घरों से निकलने वाले कूड़े का निस्तारण प्रशासन के लिए कठिन चुनौती बन गया है। कूड़ा-कचरा प्रबंधन से ही स्वच्छ भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
कचरे की प्रकृति बदलने से मुश्किलें और भी कठिन हुई हैं। ठोस, जैविक, अजैविक और ई-कचरा जैसे वर्गों में बांटे जाने के बाद उन्हें ठिकाने लगाना एक बड़ी चुनौती बन गया है। उन्हें अलग-अलग छांटना, एकत्रित करना और निस्तारण करने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का होना जरूरी हो गया है। कस्बों से लेकर महानगरों तक में कूड़ा डंपिंग के लिए जगह की किल्लत पैदा हो गई है। इस दिशा में पहल तो की गई है, लेकिन देशभर में टुकड़े-टुकड़े में चल रहे अभियान से स्वच्छ भारत मिशन में गतिरोध की आशंका है। प्रधानमंत्री ने दो अक्तूबर 2019 तक देश को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य तय किया है।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने कारपोरेट, औद्योगिक और व्यापारिक क्षेत्र से शहरों से निकलने वाले कूड़ा व कचरा से ऊर्जा, ईंधन, खाद और सीवेज से सिंचाई करने की अपील की है। नायडू ने ठोस कचरा और सीवेज को घटाने, उनकी रिसाइक्लिंग के बाद उपयोग करने पर जोर दिया। सरकार इसके लिए घरेलू और विदेशी कंपनियों को दायित्व सौंपने की तैयारी में है, जो न्यूनतम खर्च में कचरे का प्रबंधन करें।
1.33 लाख टन कचरा
दुनिया की 40 फीसद आबादी 21वीं सदी में भी कूड़े व कचरे में जिंदगी बसर करने को मजबूर है। देश के प्रथम व द्वितीय दर्जे के शहरों से रोजाना 1.33 लाख टन कचरा निकलता है। शहरों के 72 फीसद कचरे का उपयोग गड्ढा भरने और 61 फीसद सीवेज के पानी को बिना साफ किये ही नदियों में बहाया जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है। कचरे के उचित प्रबंधन से सालाना 440 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इसकी खाद से 30 फीसद रासायनिक खादों का उपयोग कम हो सकता है।
खुले में शौच की समस्या
भारत के ग्र्रामीण क्षेत्रों में 60 फीसद से अधिक लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं, जिन्हें रोकने के लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास करना होगा। शहरी क्षेत्रों में भी 20 फीसद से अधिक लोगों के खुले में शौच का आंकड़ा हमें शर्मसार करने के लिए काफी है। खुले में शौच करने के चलते होने वाली गंदगी से देश में 88 फीसद नौनिहाल दम तोड़ देते हैं।
छह करोड़ शौचालय का लक्ष्य
ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे से जहां आसानी से कंपोस्ट खाद बनाई जा रही है। लेकिन खुले में शौच करने वालों पर काबू पाना आसान नहीं है। ग्र्रामीण स्कूलों, आंगनवाड़ी व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर शौचालयों का अभाव है। हालांकि अगले चार सालों के भीतर छह करोड़ शौचालय बनाये जाने हैं। इसके लिए हर साल लगभग डेढ़ करोड़ शौचालय बनाये जाने का लक्ष्य है। ग्र्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए कारपोरेट सेक्टर की मदद से 20 हजार करोड़ रुपये का कोष बनाया गया है।
बुलंद हौसलों की कहानीः सड़कों से कूड़ा बीनने वाले की बेटी बनी 'ब्यूटी क्वीन'
Reporter : ArunKumar, RTI NEWS Thursday, October 29, 2015 19:08:04 PM
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Keywords : Miss Uncensored News Thailand 2015, Khanittha Phasaeng, Touching moment, Thai Beauty Queen, Kneels Down, Rubbish Collecting Mother, Glittering Tiara , Weird News, World News, Thailand, Miss Uncensored News 201,
कहते है कि अगर हौंसले बुलंद हो, और पाने की चाहत हो तो दुनियां की हर शोहरत आपके कदम चूमती है। फिर मंजिल की राहें कितनी भी मुश्किल क्यों न हो.....एक बार फिर एक गरीब मां जो खुद सड़को का कचड़ा बीन-बीनकर परिवार का पेट पालती थी, उसकी बेटी ने थाईलैंड की 'ब्यूटी क्वीन' का ताज जीतकर सबको भौचक्का कर दिया है।
जिस परिवारिक माहौल और घर की गरीबी को देखकर दुनियां भर के ज्यादातर बच्चे जीने की चाह छोड़ देते है या सपने देखना बंद कर देते है, ऐसे में एक कचरा बीनने वाली महिला की बेटी ब्यूटी क्वीन भी बन सकती है यह काफी हैरान करने वाली घटना है। थाईलैंड में यहां कचरा बीनने वाली एक महिला की बेटी ने ब्यूटी क्वीन का खिताब अपने नाम कर लिया है। ब्यूटी का खिताब जीतने के बाद उसने अपना ताज मां के कदमों में रख दिया और उनसे आशीर्वाद लिया।
आपको बता दें कि भारतीय उपमहाद्वीप समेत एशिया के कई देशों में बड़ों के सम्मान में उनके पैरों पर झुककर आशीर्वाद लेने का रिवाज है। भाव-विभोर कर देने वाली इस घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं।
मां को कहा थैंक्यू
थाईलैंड की 'ब्यूटी क्वीन' का खिताब जीतने वाली खानिट्टा मिन्ट फासिएंग महज 17 साल की है। उसने बीते महीने मिस अनसेंसर्ड न्यूज थाईलैंड 2015 का क्राउन जीता है। हाल ही में जब वह अपने होमटाउन लौटी तो अपने मां के पैरों में झुक गई और उन्हें थैंक्यू कहा। इस दौरान उसकी मां रास्ते में कचरा बीन रही थी। मिन्ट के सिर पर क्राउन था। उसने सेस (ब्यूटी कॉन्टेस्ट का रिबन) और हाई हील शूज पहने हुए थे।
beauty queen
मिन्ट ने मीडिया से कहा, इसमें शर्म वाली कोई बात नहीं है। वह मेरी मां है। वह ईमानदारी से अपना काम कर रही है। उन्होंने बहुत मेहनत से मुझे पाला है। वह जो कुछ भी है, अपनी मां की बदौलत है। मिन्ट ने कहा कि वह जीवन के प्रति आशावादी है। वह भी अपने परिवार की छोटी-मोटी नौकरियां करके या मां की कचरा बीनने में मदद करती रहती है।
ऐसे पहुंची ब्यूटी कॉन्टेस्ट में
मिन्ट को किसी ने बताया था कि उसे थाईलैंड के इस ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेना चाहिए। लेकिन उसने यह नहीं सोचा था कि वह जीत जाएगी। मिन्ट ने बताया कि जब कॉन्टेस्ट के विजेता के नाम की घोषणा हुई तो उसे लगा जैसे वह कोई सपना देख रही हो। उसने कभी नहीं सोचा था कि उस जैसी आम लड़की ब्यूटी क्वीन बन सकती है। मिस अनसेंसर्ड न्यूज थाईलैंड 2015 कॉन्टेस्ट 25 सितंबर को हुआ था। इसमें महिला और ट्रांसजेंडर्स हिस्सा लेते हैं।
मिन्ट फासएंग को किसी ने सलाह दी थी कि उसे थाईलैंड के इस ब्यूटी कॉन्टेस्ट में शामिल होना चाहिए, उन्होंने यह कभी नही सोचा था कि वो यह कांस्टेस्ट जीत जाऐंगी। जैसे ही ब्यूटी कॉन्टेस्ट के विजेता का अनाउंसमेंट हुआ, वह उसके लिए सपने जैसा था। उन्होने कभी नही सोचा था कि उनके जैसी सामान्य लड़की कभी ब्यूटी क्वीन बन सकती है।
यह ब्यूटी कांटेस्ट 'मिस अनसेंसर्ड न्यूज थाईलैंड 2015' कॉन्टेस्ट 25 सितंबर को हुआ था। इसमें आमतौर पर महिला और ट्रांसजेंडर्स शामिल होते हैं।
आर्थिक तंगी के कारण नही हो रहा कॉलेज में दाखिला
फिलहाल मिन्ट फासएंग का पूरा परिवार गरीबी वाली जिंदगी ही गुजार रहा है। मिन्ट ने अपना हाई स्कूल पूरा कर लिया है,लेकिन अब आर्थिक तंगी के कारण वो कॉलेज में दाखिला नही ले पा रही है। कॉन्टेस्ट में विजेता बनने के बाद मिन्ट फासएंग को उम्मीद है कि उन्हें एडवर्टाइजिंग, फिल्म और टेलीविजन से ऑफर आ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो उन्हें उम्मीद है कि उनके घर की स्थिति में थोड़ा सुधार आएगा।
मिन्ट फासएंग कहती है कि मां सफाई का काम करती रहेगी, क्योंकि वह उसकी मदद नहीं लेना चाहती। उसकी मां अपने पति से काफी साल पहले अलग हो गईं थीं और दूसरे पुरुष से दोबारा शादी की थी।
मिन्ट फासएंग के पड़ोसियों का कहना है कि वह न केवल बेहद खूबसूरत हैं बल्कि काफी मजबूत व दृढ़ इच्छाशक्ति वाली लड़की है। इसके साथ ही वह अब भी मां के साथ कचरा बीनने के काम में सहयोग करतीं हैं।
Recycling (पुनरावर्तन)
साँचा:Recycling
पुनरावर्तन में संभावित उपयोग में आने वाली सामग्रियों के अपशिष्ट की रोकथाम कर नए उत्पादों में संसाधित करने की प्रक्रिया ताजे कच्चे मालों के उपभोग को कम करने के लिए, उर्जा के उपयोग को घटाने के लिए वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए (भस्मीकरण से) तथा जल प्रदूषण (कचरों से जमीन की भराई से) पारंपरिक अपशिष्ट के निपटान की आवश्यकता को कम करने के लिए, तथा अप्रयुक्त विशुद्ध उत्पाद की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए पुनरावर्तन में प्रयुक्त पदार्थों को नए उत्पादों में प्रसंस्करण की प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं. पुनरावर्तन आधुनिक अपशिष्ट को कम करने में प्रमुख तथा अपशिष्ट को "कम करने, पुनः प्रयोग करने, पुनरावर्तन करने" की क्रम परम्परा का तीसरा घटक है.
पुनरावर्तनीय पदार्थों में कई किस्म के कांच, कागज, धातु, प्लास्टिक, कपड़े, एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं. हालांकि प्रभाव में एक जैसा ही लेकिन आमतौर पर जैविक विकृतियों के अपशेष से खाद बनाने अथवा अन्य पुनः उपयोग में लाने - जैसे कि भोजन (पके अन्न) तथा बाग़-बगीचों के कचरों को पुनरावर्तन के लायक नहीं समझा जाता है. पुनरावर्तनीय सामग्रियों को या तो किसी संग्रह शाला में लाया जाता है अथवा उच्छिस्ट स्थान से ही उठा लिया जाता है, तब उन्हें नए पदार्थों में उत्पादन के लिए छंटाई, सफाई तथा पुनर्विनीकरण की जाती है.
सही मायने में, पदार्थ के पुनरावर्तन से उसी सामग्री की ताजा आपूर्ति होगी, उदाहरणार्थ, इस्तेमाल में आ चुका कागज़ और अधिक कागज़ उत्पादित करेगा, अथवा इस्तेमाल में आ चुका फोम पोलीस्टाइरीन से अधिक पोलीस्टाइरीन पैदा होगा. हालांकि, यह कभी-कभार या तो कठिन अथवा काफी खर्चीला हो जाता है (दूसरे कच्चे मालों अथवा अन्य संसाधनों से उसी उत्पाद को उत्पन्न करने की तुलना में), इसीलिए कई उत्पादों अथवा सामग्रियों के पुनरावर्तन में अन्य सामग्रियों के उत्पादन में (जैसे कि कागज़ के बोर्ड बनाने में) बदले में उनकें ही अपने ही पुनः उपयोग शामिल हैं. पुनरावर्तन का एक और दूसरा तरीका मिश्र उत्पादों से, बचे हुए माल को या तो उनकी निजी कीमत के कारण (उदाहरणार्थ गाड़ियों की बैटरी से शीशा, या कंप्यूटर के उपकरणों में सोना), अथवा उनकी जोखिमी गुणवत्ता के कारण (जैसे कि, अनेक वस्तुओं से पारे को अलग निकालकर उसे पुनर्व्यव्हार में लाना) फिर से उबारकर व्यवहार योग्य बनाना है.
पुनरावर्तन की प्रक्रिया में आई लागत के कारण आलोचकों में निवल आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को लेकर मतभेद हैं, और उनके सुझाव के अनुसार पुनरावर्तन के प्रस्तावक पदार्थों को और भी बदतर बना देते हैं तथा अनुभोदन एवं पुष्टिकरण के पक्षपातपूर्ण पूर्वग्रह झेलना पड़ता है. विशेषरूप से, आलोचकों का इस मामले में तर्क है कि संग्रहीकरण एवं ढुलाई में लगने वाली लागत एवं उर्जा उत्पादन कि प्रक्रिया में बचाई गई लागत और उर्जा से घट जाती (तथा भारी पड़ जाती हैं) और साथ ही यह भी कि पुनरावर्त के उद्योग में उत्पन्न नौकरियां लकड़ी उद्योग, खदान एवं अन्य मौलिक उत्पादनों से जुड़े उद्योगों की नौकरियां को निकृष्ट सकझा जाती है; और सामग्रियों जैसे कि कागज़ की लुग्दी आदि का पुनरावर्तक सामग्री के अपकर्षण से कुछ ही बार पहले हो सकता है जो और आगे पुनरावर्तन के लिए बाधक हैं. पुनरावर्तन के प्रस्तावकों के ऐसे प्रत्येक दावे में विवाद है, और इस संदर्भ में दोनों ही पक्षों से तर्क की प्रामाणिकता ने लम्बे विवाद को जन्म दिया है.
Monday, 5 January 2015
Swachh Bharat Mission
:: Swachh Bharat Mission by Foreign Service Institute (FSI) :::
At the call of the Prime Minister of India, Foreign Service Institute (FSI) joined the Swachh Bharat Mission. Not being content to just limit ourselves to cleanliness drive at the Institute, FSI looked at our surroundings and decided to include the vicinity of Ber Sarai where FSI is located.
To jointly discuss the move forward, a meeting was convened at FSI today in which all stakeholders from the neighbourhood of Ber Sarai were invited. Many of them participated including those from Ber Sarai Merchants Association, Ber Sarai DDA Residential Welfare Association, ISTM (Institute of Secretariat Training and Management), National Institute of Health and Family Welfare, Vaikunthnath Temple, as also prominent NGOs like Sulabh International Social Service Organisation, Chintan and Manavata Parivar. The meeting decided to form a coordination committee of all concerned to regularly draw a program of Swachchhata Abhiyaan with the area of Ber Sarai in mind. The next cleanliness drive is scheduled for15 November 2014.
At the call of the Prime Minister of India, Foreign Service Institute (FSI) joined the Swachh Bharat Mission. Not being content to just limit ourselves to cleanliness drive at the Institute, FSI looked at our surroundings and decided to include the vicinity of Ber Sarai where FSI is located.
To jointly discuss the move forward, a meeting was convened at FSI today in which all stakeholders from the neighbourhood of Ber Sarai were invited. Many of them participated including those from Ber Sarai Merchants Association, Ber Sarai DDA Residential Welfare Association, ISTM (Institute of Secretariat Training and Management), National Institute of Health and Family Welfare, Vaikunthnath Temple, as also prominent NGOs like Sulabh International Social Service Organisation, Chintan and Manavata Parivar. The meeting decided to form a coordination committee of all concerned to regularly draw a program of Swachchhata Abhiyaan with the area of Ber Sarai in mind. The next cleanliness drive is scheduled for15 November 2014.
Rag-pickers to be trained in managing waste
The East Delhi Municipal Corporation along with its South Delhi counterpart is going to start a zero waste management scheme on a pilot basis in East Vinod Nagar and Dwarka areas.
The aim of the project is to segregate garbage at source for further utilization and minimise the amount of garbage which is dumped at sanitary landfill sites.
The East Delhi civic body announced the project on Friday, during the presentation of its budget for 2015-16. The corporation claims this will strengthen Swachh Bharat Mission and will also ease pressure on sanitary landfill sites, which have exhausted capacity.
The project will be launched in Dwarka and will be implemented simultaneously at East Vinod Nagar. Both the projects are estimated to start by early next year.
A team of the South Delhi Municipal Corporation studied and proposed to adopt this model successfully undertaken in Pune, for segregation, disposal and composting on ward and housing society-level.
The two corporations had called for a joint expression of interest from private companies and claim they have received encouraging response from over 15 firms willing to participate in the project.
If the results of the project are satisfactory, the civic bodies will implement it in Vasant Kunj.
The East body has demarcated the land in East Vinod Nagar and DDA has allotted 5 acres of land for the project in Dwarka.
“Under zero waste management, rag-pickers will be trained in segregating different kinds of waste. Garbage collectors will have two bins for dry and wet waste which will enable segregation of waste at source through door-to-door collection method,” said Manish Gupta, commissioner EDMC.
Dry waste, including paper and plastic, will be sent to a centralised recycling plant. Wet waste like peels of fruits and vegetables will be dumped in compost pits at the local level, while other organic material will be sent to biogas plants. The remaining waste will then be sent to the landfill. So far corporation claims that households will give a minimum of Rs. 30 a month to the NGO for door-step collection while residents of slums will pay Rs. 10.
Corporation claims that rag pickers trained by the company would be able to sell recyclable waste which will help them earn an extra buck.
“The project is very cost effective and will help us in cutting short expense on transportation of waste to the landfill sites. We will save drastically on fuel and vehicles deployed for collecting and dumping waste. Moreover, it will decongest the road as huge trucks involved in dumping garbage will be off roads,” explained Gupta.
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