कूड़ा बीनने वाले बचा सकते हैं पर्यावरण Updated on: Sun, 18 Nov 2012 07:13 PM (IST) बरेली: रोज के कचरे और उसमें मौजूद प्लास्टिक के नुकसान पर कई संस्थाएं और सरकार जागरूक करती रहती हैं। उपजा प्रेस क्लब में रविवार को अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ (एआइकेएमएम) और असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा (यूएलआरएफ) ने सेमिनार करके आसान और न्यायसंगत रास्ता सुझाया। सेमिनार में असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा के महासचिव हरीश पटेल ने कहा कि कूड़ा उठाने वाली आबादी समाज में अछूत की तरह हाशिये पर है। कूड़ा बीनकर उसकी छंटाई और रिसाइकिलिंग में योगदान को फिर भी नजरंदाज किया जाता है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के जिलाध्यक्ष यशपाल सिंह ने कहा कि यह मानवाधिकार कानूनों के लिए चिंतनीय विषय है। इस अहम कड़ी से जुड़ी आबादी को कानूनी तौर पर इज्जत देकर नगर पालिका का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। यूएलआरएफ के मुश्ताक हुसैन ने कहा कि सॉलिड वेस्ट को बेहतर तरीके से निस्तारित किया जाए तो पर्यावरण की काफी रक्षा की जा सकती है। सेमिनार में बताया गया कि दस दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर एआइकेएमएम का राष्ट्रीय सम्मेलन होगा। अगले दिन गोष्ठी होगी, जिसमें दूसरे देशों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। आयोजन में मजदूर मंडल के लक्ष्मण सिंह राणा, इंकलाबी मजदूर केंद्र के सतीश कुमार, टीडी भास्कर, चंद्रपाल सिंह आदि शामिल हुए। पेश किया मॉडल एआइकेएमएम की ओर से कूड़ा निस्तारण के लिए पेश किए मॉडल में बताया गया कि कुल कचरे का 80 फीसद घरों से ही पैदा होता है। जिसमें 50 फीसदी जैविक कचरा को बायो गैस आदि से और 30 फीसद को रिसाइकिलिंग के जरिये सामुदायिक स्तर पर निपटाया जा सकता है। केवल 20 प्रतिशत कचरा ही ऐसा होता है, जिसे समाप्त करना होगा। कचरे की छंटाई के लिए मौजूदा कूड़ा बीनने वालों को ही लगाया जा सकता है। इस मॉडल पर बेंगलोर में काम किया जा रहा है। इसको संचालित कराने के लिए महासंघ नगर निगम को मुफ्त सेवा देने को तैयार है। यह भी जानें कूड़ा बीनने वाले हर साल 9 लाख 62 हजार 133 टन कार्बन डाईऑक्साइड गैसों को अप्रभावी बनाते हैं। यह एक लाख 75 हजार मोटर वाहनों से उत्सर्जित की जाने वाले प्रदूषण के बराबर है। सिर्फ दिल्ली में साढ़े तीन लाख लोग कूड़ा बीनने के व्यवसाय में सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर लगे हैं। --------------------- बांझ तक बना सकता है सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ के सचिव शशि भूषण पंडित ने दैनिक जागरण से बातचीत में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट पर भी बेबाक राय जाहिर की। उन्होंने बताया कि रविवार को प्लांट जाकर भी देखा। उन्होंने कहा कि कचरा में 70 फीसद प्लास्टिक होती है, जिसके निस्तारण में 90 फीसद क्लोरीन का उत्सर्जन होगा और डाईऑक्सीन गैस वातारण में घुलेगी। इन गैसों का असर पशु और मानव दोनों में बांझपन, हृदय रोग आदि पैदा कर सकता है।
Security Guard,Housekeeping & Solid Waste Management Services
Tuesday, 24 September 2013
कूड़ा बीनने वाले बचा सकते हैं पर्यावरण
कूड़ा बीनने वाले बचा सकते हैं पर्यावरण Updated on: Sun, 18 Nov 2012 07:13 PM (IST) बरेली: रोज के कचरे और उसमें मौजूद प्लास्टिक के नुकसान पर कई संस्थाएं और सरकार जागरूक करती रहती हैं। उपजा प्रेस क्लब में रविवार को अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ (एआइकेएमएम) और असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा (यूएलआरएफ) ने सेमिनार करके आसान और न्यायसंगत रास्ता सुझाया। सेमिनार में असंगठित श्रमिक अधिकार मोर्चा के महासचिव हरीश पटेल ने कहा कि कूड़ा उठाने वाली आबादी समाज में अछूत की तरह हाशिये पर है। कूड़ा बीनकर उसकी छंटाई और रिसाइकिलिंग में योगदान को फिर भी नजरंदाज किया जाता है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के जिलाध्यक्ष यशपाल सिंह ने कहा कि यह मानवाधिकार कानूनों के लिए चिंतनीय विषय है। इस अहम कड़ी से जुड़ी आबादी को कानूनी तौर पर इज्जत देकर नगर पालिका का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। यूएलआरएफ के मुश्ताक हुसैन ने कहा कि सॉलिड वेस्ट को बेहतर तरीके से निस्तारित किया जाए तो पर्यावरण की काफी रक्षा की जा सकती है। सेमिनार में बताया गया कि दस दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर एआइकेएमएम का राष्ट्रीय सम्मेलन होगा। अगले दिन गोष्ठी होगी, जिसमें दूसरे देशों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। आयोजन में मजदूर मंडल के लक्ष्मण सिंह राणा, इंकलाबी मजदूर केंद्र के सतीश कुमार, टीडी भास्कर, चंद्रपाल सिंह आदि शामिल हुए। पेश किया मॉडल एआइकेएमएम की ओर से कूड़ा निस्तारण के लिए पेश किए मॉडल में बताया गया कि कुल कचरे का 80 फीसद घरों से ही पैदा होता है। जिसमें 50 फीसदी जैविक कचरा को बायो गैस आदि से और 30 फीसद को रिसाइकिलिंग के जरिये सामुदायिक स्तर पर निपटाया जा सकता है। केवल 20 प्रतिशत कचरा ही ऐसा होता है, जिसे समाप्त करना होगा। कचरे की छंटाई के लिए मौजूदा कूड़ा बीनने वालों को ही लगाया जा सकता है। इस मॉडल पर बेंगलोर में काम किया जा रहा है। इसको संचालित कराने के लिए महासंघ नगर निगम को मुफ्त सेवा देने को तैयार है। यह भी जानें कूड़ा बीनने वाले हर साल 9 लाख 62 हजार 133 टन कार्बन डाईऑक्साइड गैसों को अप्रभावी बनाते हैं। यह एक लाख 75 हजार मोटर वाहनों से उत्सर्जित की जाने वाले प्रदूषण के बराबर है। सिर्फ दिल्ली में साढ़े तीन लाख लोग कूड़ा बीनने के व्यवसाय में सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर लगे हैं। --------------------- बांझ तक बना सकता है सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर महासंघ के सचिव शशि भूषण पंडित ने दैनिक जागरण से बातचीत में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट पर भी बेबाक राय जाहिर की। उन्होंने बताया कि रविवार को प्लांट जाकर भी देखा। उन्होंने कहा कि कचरा में 70 फीसद प्लास्टिक होती है, जिसके निस्तारण में 90 फीसद क्लोरीन का उत्सर्जन होगा और डाईऑक्सीन गैस वातारण में घुलेगी। इन गैसों का असर पशु और मानव दोनों में बांझपन, हृदय रोग आदि पैदा कर सकता है।
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