Thursday, 2 October 2014

स्वच्छ भारत मिशन

भारत सरकार द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाये जाने की घोषणा स्वागतयोग्य है। प्रधानमंत्री मोदी जी 2 अक्टूबर को एक बुकलेट जारी कर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ लाँच करते हुए स्वयं इसकी शुरूआत कर लोगों को जागरूक करेंगे। समस्त देशवासी इस अभियान से जुड़कर इसे सफल बनायें इसके लिए ‘स्वच्छता शपथ’ कुछ इस प्रकार होगा-
  • महात्मा गाँधी ने जिस भारत का सपना देखा था, उसमें सिर्फ राजनैतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ एवं विकसित देश की कल्पना भी थी।
  • महात्मा गांधी ने गुलामी की जंजीरों को तोड़कर माँ भारती को आजाद कराया। अब हमारा कर्तव्य  है कि गन्दगी को दूर करके भारत माता की सेवा करें।
  • मैं शपथ लेता/लेती हूँ कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा/रहूंगी और उसके लिए समय दूँगा/दूँगी।
  • हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह 2 घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करूंगा/करूंगी।
  • मैं न गंदगी करूँगा न किसी और को करने दूंगा/दूंगी।
  • सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गांव से एवं मेरे कार्यस्थल से शुरूआत करूंगा/करूंगी।
  • मैं यह मानता/मानती हूं कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं उसका कारण वहां के नागरिक गंदगी नहीं करते और न ही होने देते हैं।
  • इस विचार के साथ मैं गाँव हो या शहर गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करूंगा/करूंगी।
  • मैं आज जो शपथ ले रहा हूँ वह अन्य 100 व्यक्तियों से भी करवाऊँगा/करवाऊँगी।
  • वे भी मेरी तरह स्वच्छता के लिए 100 घंटे दें, इसके लिए प्रयास करूंगा/करूगी।
  • मुझे मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढ़ाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा।
            हम सभी भलीभांति जानते हैं कि यह अभियान तभी सफल हो सकेगा जब सभी भारतवासी सच्चे मन से गांधी जी के विचारों और उनकी कार्यप्रणाली को आत्मसात करेंगे। क्योंकि हमारे देश की बिडम्बना है कि हम स्वयं गांधी जी की तरह सोच नहीं बना पाते। काम को छोटा-बड़ा समझकर उसको सोचने-विचारने में ही अधिकाशं समय बर्बाद कर देते हैं। 'यह मेरा काम नहीं है, उसका काम है' जैसी धारणा का हमारे मन में गहरी पैठ है। जबकि बापू यह मानते थे कि अपनी सेवा किये बिना कोई दूसरों की सेवा नहीं कर सकता है। दूसरों की सेवा किये बिना जो अपनी ही सेवा करने के इरादे से कोई काम शुरू करता है, वह अपनी और संसार की हानि करता है। वे खुद कैसे दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते थे, इस पर एक प्रेरक प्रसंग देखिए- मगनवाड़ी आश्रम में सभी को अपने हिस्से का आटा पीसना पड़ता था। एक बार आटा समाप्त हो गया। आश्रमवासी रसोईया सोचने लगा कि अब क्या किया जाय? यदि वह चाहता तो स्वयं भी पीसकर उस दिन का काम चला सकता था, लेकिन चिढ़कर उसने ऐसा नहीं किया। वह सीधे गांधी जी के पास गया और बोला ‘आज रसोईघर में रोटी बनाने के न आटा है न कोई पीसने वाला है। अब आप ही बताएं, क्या करूं? गांधी जी ने शांत भाव से कहा- ‘इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है। चलो, मैं चलकर पीस देता हूँ।’ बापू अपना काम छोड़कर गेंहूँ  पीसने बैठ गए। जब रसोईया ने गांधी जी को चक्की चलाते देखा तो उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। उसने गांधी जी से कहा कि ‘बापू आप जाइये, मैं खुद ही पीस लूंगा।’ इसका गहरा प्रभाव केवल रसोईया पर ही नहीं बल्कि सभी व्यक्तियों पर पड़ा।   
आइए, स्वच्छता अभियान से जुड़कर ‘स्वच्छता शपथ’ में उल्लेखित बिन्दुओं पर आज ही अमल करते हुए देश को स्वच्छ बनाने की दिशा में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए आगे आयें और भारत को स्वच्छ बनायें।

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